शिक्षा class 12th hindi subjective question

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शिक्षा class 12th hindi subjective question

Summary-> जे कृष्णमूर्ति मानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य भी यही है मनुष्य को पूरी तरह भारहीन स्वतंत्र और प्रज्ञा निर्भर बनाना है तभी उसमें सच्चा सहयोग सदभाव प्रेम और करुणा सच्चा दायित्व बोध कराती है। हमें महरा बनाती है वह हमें सीमाओं और संकीर्णताओं से ज्यास्ती है। शिक्षा का ध्येय पेशेवर दक्षता आजीविका और महज कुछ कर्म कौशल ही नहीं उसका ध्येय प्रचलित प्राणलियों का भीतर-बाहर से पर्यालोचन करते हैं।
कृष्णमूर्ति प्रायः लिखते नहीं थे। वे बोलते संभाषण करते थे। प्रश्नकर्ताओं को उत्तर देते थे। यह शैली भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अत्यंत प्राचीन है शिक्षा नामक संभाषण के जरिए उनके विचारों एवं शिक्षा से लाभ की प्रेरणा मिलती है।
जे कृष्णमूर्ति मानते हैं कि शिक्षा मनुष्य का उन्नयन करती है। वह जीवन के सत्य जीवन जीने के तरीके में मदद करती है इस संदर्भ को देते हुए वे बताते हैं कि शिक्षक हों या विद्यार्थी उन्हें यह पूछना आवश्यक नहीं कि वे क्यों शिक्षित हो रहे हैं। क्योंकि जीवन विलक्षण है ये पक्षी ये फूल ये वैभवशाली वृक्ष ये आसमान ये सितारे ये सरिताएं है ये मत्स्य यह सब हमारा जीवन है। जीवन समुदायों जातियों और देशों का पारस्परिक सतत संघर्ष है जीवन ध्यान है जीवन धर्म भी है जीवन गूढ़ है जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएं हैं। ईर्ष्याएं महत्वाकांक्षाएं वामनाएं भय सफलताएं चिंताएं। शिक्षा इन सब का अनावरण करती है शिक्षा का कार्य है कि वह संपूर्ण जीवन प्रक्रिया को समझने में हमारी सहायता करें न किस हमें केवल कुछ व्यवसाय या ऊंची नौकरी के योग्य बनाएं। कृष्णमूर्ति कहते हैं कि हमें बचपन से ही ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जहां भय का वास न हो नहीं तो व्यक्ति जीवन भर कुंठित हो जाता है। उसकी महत्वाकांक्षाएं दबकर रह जाती है मेधा शक्ति दब जाती है मेघा शक्ति के बारे में कहते हैं कि मेधा वह शक्ति है जिससे आप भय और सिद्धांतों की अनुपस्थिति में आप स्वतंत्रता से सोचते हैं ताकि आप सत्य की वास्तविकता कि अपने लिए कुछ कर सके पूरा विश्व इस भय से सह‌मा हुआ है। क्योंकि यह दुनिया वकीलों सिपाहियों और सैनिकों की दुनिया है। यहां प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी के विरोध में खड़ा है किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के लिए प्रतिष्ठा सम्मान शक्ति व आसम के लिए संघर्ष कर रहा है अतः निर्विकार रूप से शिक्षा का कार्य है कि वह इस अतिरिक्त और बाठा भय का उच्छेदन करें।

सब्जेक्टिव –

1. शिक्षा का क्या अर्थ है एवं इसके क्या कार्य है स्पष्ट करें?
उत्तर शिक्षा का क्या अर्थ जीवन के सत्य से परिचित होना और संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी मदद करना है। क्योंकि जीवन विलक्षण है ये पक्षी ये फूल ये वैभवशाली वृक्ष ये आसमान ये सितारे ये मत्स्य सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है जीवन अमीर भी जीवन गूढ़ है जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएं ईष्याएं महत्वकांक्षाएं वासनाएं या सफलताएं एवं चिंताएं हैं। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा जीवन है हम कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लेते हैं हम‌ विवाह कर लेते हैं बच्चे पैदा कर लेते हैं और इस प्रकार अधिकाधिक यंत्रवत् बन जाते हैं। हम सदैव जीवन से भयाकुल चिंतित और भयभीत बने रहते हैं शिक्षा इन सबों का निराकरण करती है भय के कारण मेघा शक्ति कुंठित हो जाती है। शिक्षा से दूर करता है शिक्षा समाज के ढांचे के अनुकूल बनने में आपकी सहायता करती है या आप को पूर्ण स्वतंत्रता होती है वह सामाजिक समस्याओं का निराकरण करके शिक्षा का यही कार्य है।

2. जीवन क्या है इसका परिचय लेखक ने किस रूप में दिया है?
उत्तर- लेखक के अनुसार यह सारी सृष्टि ही जीवन है जीवन बड़ा अद्भुत है यह असीम और अगाथ है। यह अनंत रहस्यों को लिए हुए हैं यह विशाल साम्राज्य है जहां हम मानव कर्म करते हैं लेखक जीवन की क्षुद्रताओं से दुखी होता है। वह कहता है हम अपने आप को आजीविका के लिए तैयार करते हैं तो हम जीवन का पूरा लक्ष्य से खो देते हैं यह जीवन विलक्षण है ये पक्षी ये फूल ये वैभवशाली वृक्ष ये आसमान ये सितारे ये सरिताएं ये मत्स्य यह सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है जीवन अमीर भी जीवन समुदायों जातियों और देशों का पारस्परिक सतत संघर्ष है। जीवन ध्यान है जीवन धर्म है जीवन मूढ़ है जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएं है ईष्याएं महत्वाकांक्षाएं वासनाएं भय सफलताएं चिंताएं है केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा है हम सदैव जीवन से भयाकुल चिंतित और भयभीत बने रहते हैं अतएव इस जीवन को समझने में शिक्षा हमारी मदद करती है शिक्षा इस विशाल विस्तीर्ण जीवन को इस के समस्त रहस्यों को इसकी अद्भुत रमणीयताओं को इसके दुखों और हों को समझने में सहायता करती है।

3. बचपन से ही आपको ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो क्यों?
उत्तर- बचपन से ही यदि व्यक्ति स्वतंत्र वातावरण में नहीं रहता है तो व्यक्ति में भय का संचार हो जाता है। यह भय मन में ग्रंथि बनकर घर कर जाता है और व्यक्ति की महत्वाकांक्षा को दवा देता है हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों-ज्यों बड़े हो जाते हैं। त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं हम जीवन से भयभीत रहते हैं नौकरी के छूटने से परंपराओं से और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी पत्नी या पति क्या कहेंगे। हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रूप में भयभीत है और जहां भय है वहां मेघा नहीं है इसलिए हमें बचपन से ही ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जहां भय न हो जहां स्वतंत्रता हो मनचाहे कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं अपितु एक ऐसी स्वतंत्र जहां आप जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया समझ सके हमारे जीवन को कितना कुरूप बना दिया है। सचमुच जीवन के इस ऐश्वर्य और इसकी अनंत गहराई और इसके अद्भुत सौंदर्य की मान्यता तो तभी महसूस करेंगे जब आप सड़े हुए समाज के खिलाफ विद्रोह करेंगे ताकि आप एक मानव की भांति अपने लिए सत्य की खोज कर सकें।

4. जहां भय है वहां मेधा नहीं हो सकती क्यों?
उत्तर- हम जानते हैं कि ब्रह्मपन से ही हमारे लिए ऐसे बाताबरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो
उत्तर- हम जानते हैं कि बचपन से ही हमारे लिए ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं। हम जीवन से भयभीत रहते हैं नौकरी के छूटने से परंपराओं से और इस बात से भी करते हैं कि पड़ोसी या पत्नी या पति क्या कहेंगे हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रूप में भयभीत है और जहां भय हैं वहां मेघा नहीं है निसंदेह यह मेघा शक्ति भय के कारण दब जाती है। मेरा शक्ति वह शक्ति है जिसमें आप भय और सिद्धांतों की अनुपस्थिति में स्वतंत्रता के साथ सोचते हैं ताकि आप अपने लिए सत्य की वास्तविकता की खोज कर सकेंा यदि आप भयभीत है तो फिर आप कभी मेधावी नहीं हो सकेंगे। क्योंकि भय मनुष्य को किसी कार्य को करने से रोकता है वह महत्त्वकांक्षा फिर चाहे अध्यात्मिक हो या सांसारिक चिंता और भय को जन्म देती है अतः याह ऐसे मन का निर्माण करने में सहायता नहीं कर सकती जो सुस्पष्ट हो सरल हो सीधा हो और दूसरे शब्दों में मेघावी हो।

5. जीवन में विद्रोह का क्या स्थान है?
उत्तर- जब कोई व्यक्ति सच में जीवन के इस ऐश्वर्य की इसकी अनंत गहराई और इसके अद्भुत सौंदर्य की धन्यता महसूस कर लेता है तो जीवन के प्रति तनिक भी कसमसाहट का भाव आता है तो वह विद्रोह कर बैठता है,संगठित धर्म के विरुद्ध परंपरा के खिलाफ और इस सड़े हुए समाज के खिलाफ ताकि एक मानव की भांति के लिए सत्य की खोज कर सके जिंदगी का अर्थ है अपने लिए सत्य की खोज और यह तभी संभव है जब स्वतंत्रता हो जब आपके अंदर में सतत् क्रांति की ज्वाला प्रकाशमान हो। समाज में व्यक्ति सुरक्षित रहना चाहता है और साधारणतया सुरक्षा में जीने का अर्थ है अनुकरण में जीना अर्थात भय में जीना भय से मुक्त होने के लिए व्यक्ति को विद्रोह करना पड़ता है अतः जीवन में विद्रोह का महत्वपूर्ण स्थान है।

6. नूतन विश्व का निर्माण कैसे हो सकता है?
उत्तर- आज संपूर्ण विश्व में महत्वकांक्षी तथा प्रतिस्पर्धा के कारण अराजकता फैली हुई है। विश्व के सभी देश पतन की ओर अग्रसर है। इसे रोकना मानव समाज के लिए एक चुनौती है इस चुनौती का प्रत्युत्तर पूर्णतया से तभी दिया जा सकता है जब हम अभय हो हम एक हिंदू या एक साम्यवादी या एक पूंजीवादी की भांति न सोचे अपितु एक समग मानव की भांति इस समस्या का हल खोजने का प्रयत्न करें और इस समस्या का हल तब तक नहीं खोज सकते हैं जब तक कि हम स्वयं संपूर्ण समाज के खिलाफ क्रांति नहीं करते इस महत्वाकांक्षा के खिलाफ विद्रोह नहीं करते जिस पर संपूर्ण मानव समाज आधारित है जब हम स्वयं महत्वकांक्षी न हो। परिग्रही न हो एवं अपनी ही सुरक्षा से न चिपके हो तभी हम इस चुनौती का प्रत्युत्तर दे सकेंगे। तभी हम नूतन विश्व का निर्माण कर सकेंगे।

7. यहां प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी के विरोध में खड़ा है और किसी सुरक्षित स्थ के लिए प्रतिष्ठा सम्मान शक्ति व आराम के लिए निरंतर संघर्ष कर रहा है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति जे कृष्णमूर्ति के संभाषण शिक्षा से ली गई है इसमें संभाषक क हमने ऐसे समाज का निर्माण कर रखा है जहां प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के विरोध में खड़ा है क्योंकि यह व्यवस्था इतनी जटिल है कि यह शोषक और शोषित वर्ग में बट गया है मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण हो रहा है एक दूसरे पर वर्चस्व के लिए आपस में होड़ है यह पूरा विश्व की अंतिम युद्ध में जकड़ा हुआ है इसके मार्गदर्शक राजनीतिज्ञ बने हैं जो सतत शक्ति की खोज में लगे हैं यह दुनिया वकीलों सिपाहियों और सैनिकों की दुनिया है यह उन महत्वकांक्षी स्त्री पुरुषों की दुनिया है जो प्रतिष्ठा के पीछे दौड़े जा रहे हैं और इसे पाने के लिए एक दूसरे के साथ संघर्षरत है। दूसरी और अपने अपने अनुयायियों के साथ सन्यासी और धर्मगुरु है जो इस दुनिया में या दूसरी दुनिया में शक्ति और प्रतिष्ठा की चाह कर रहे हैं। यह विश्व ही पूरा पागल है पूर्णतया आंत यहां एक और साम्यवादी पूंजीपति से लड़ रहा है तो दूसरी और समाजवादी दोनों का प्रतिरोध कर रहा है इसलिए संभाषण कहता है कि यहां प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी के विरोध में खड़ा है और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के लिए प्रतिष्ठा सम्मान शक्ति व आराम के लिए संघर्ष कर रहा हैं। यह संपूर्ण विश्व की परस्पर विरोधी विश्वासों और विभिन्न वगों जातियों पृथक पृथक विरोधी राष्ट्रीयता और हर प्रकार के मूढ़ता और क्रूरता में छिन्न भिन्न होता जा रहा है। और हम उसी दुनिया में रहने के लिए शिक्षित किए जा रहे हैं इसलिए संभाषण को दुस्ख है कि व्यक्ति निर्भयतापूर्ण वातावरण के बदले सड़े हुए समाज में जीने को विवश हैं। अतः हमें अविलंब एक स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण तैयार करना होगा ताकि हम उसमें रहकर अपने लिए सत्य की खोज कर सके मेधावी बन सके ताकि हम अपने अंदर सतत एक गहरी मनोवैज्ञानिक विद्रोह की अवस्था में रह सकें।

8. क्रांति करना सीखना और प्रेम करना तीनों पृथक पृथक प्रक्रियाएं नहीं है कैसे?
उत्तर- हमें यह मानकर चलना चाहिए कि विश्व में पहले से ही अराजकता फैली है इसलिए हमारे समाज को अराजक स्थिति से निकालने के लिए समाज में क्रांति की आवश्यकता है तभी हम सुव्यवस्थित समाज का निर्माण कर सकेंगे यदि हम सचमुच इसका क्षय देखते हैं तो हमारे लिए एक चुनौती है इस ज्वलंत समस्या का हल खोजें। इस चुनौती का उत्तर हम किस प्रकार देते हैं यह बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है इस ज्वलंत समस्या की खोज में समाज के खिलाफ क्रांति करें तभी इस चुनौती का प्रत्युत्तर दे सकेंगे इस दौरान हम जो भी करते हैं वह वास्तव में अपने पूरे जीवन से सीखते हैं। तब हमारे लिए न कोई गुरू रह जाता है न मार्गदर्शक हर वस्तु हमें एक नई सीख दे जाती है तब हमारा जीवन स्वयं गुरु हो जाता है और हम सीखते जाते हैं जिस कि सीखने के क्रम में गहरी दिलचस्पी रखते हैं उसके संबंध में प्रेम से खोजते हैं उर संपूर्ण मन, संपूर्ण सता उसी में रहती है ठीक इसी भांति जिस क्षण यह गहराई से हैं कि यदि हम महत्वकांक्षी नहीं होंगे तो क्या हमारा हास नहीं होगा यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है इस महत्त्वकांक्षा को पूरा करने के क्रम में क्रांति सीखना प्रेम सब साथ साथ चलता है अतः हम कह सकते हैं कि प्रेम क्रांति और सीखना पृथक प्रक्रियाएं नहीं है।

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