ओ सदानीरा class 12th Hindi Subjective question

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ओ सदानीरा class 12th Hindi Subjective question

★सारांश★
जगदीश चंद माथुर ओ सदानीरा शीर्षक निबंध के माध्यम से गंडक नदी को निमित्त बनाकर उसके किनारे की संस्कृति और जीवन परिवार की अतरंग झांकी पेश करते हैं जो स्वयं गंडक नदी की तरह प्रवाहित दिखलाई पड़ता है। सर्वप्रथम चंपारण क्षेत्र की प्राकृतिक वातावरण का वर्णन करते हुए उसकी एक-एक अंग का मनोहारी अंकन करते हैं जिसे छायावादी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण देखा जा सकता है इसी तरह निबंध में भी देखा जा सकता है एक अंश देखिए बिहार के उत्तर पश्चिम कोण के चंपारण इस क्षेत्र की भूमि पुरानी भी और नवीन भी हिमालय की तलहटी में जंगलों की मोदी से उतारकर मानव मानों शैशव-सुलभ अंगों और मुस्कान वाली धरती को ठुमक ठुमककर चलना सिखा रहा है।

इसके साथ माथुर संस्कृति के गर्त में जा कर आना उन्हें लगता है जैसे उन्मत्त यौवना वीरांगना हो जो प्रचंड नर्तन कर रही हो। उन्हें साठ-बासठ की बाढ़ रामचरितमानस के क्रोधरूपी कैकयी की तरह दिखलाई पड़ती हैं। वे बताते हैं नदियों में बाढ़ आना मनुष्यों के उच्छृंखलता के कारण है यदि महाजन जो चंपारण से गंगा तट तक फैला हुआ था न करता तो बाढ़ न आती माथुर तर्क देते हैं। कि वसुंधराभोगी मानव और धर्माधमानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं क्योंकि वसुंधरा होगी मानव अपने भोग विलास के लिए जंगलों की कटाई कर रही है तो धर्माध मानव पूजा-पाठ सड़ी-गली सामसी को गंगा नदी में प्रवाहित कर उसे दूषित कर रहा है।

माथुर मध्ययुगीन समाज की सच्चाई भी बताते हैं कि आक्रमण के कारण यह अपनी महत्वाकांक्षा की तृप्ति के लिए मुसलमान शासकों ने अंधाधुंध जंगलों की कटाई की इसी तरह यहां अनेक संस्कृति आये और यही रच बस गए सभी ने उसका दोहन ही किया। इस मिली-जुली संस्कृति का परिणाम कीमियो प्रक्रिया है। चंपारण के प्रत्येक स्थल पर प्राचीन युग से लेकर आधुनिक युग में गांधी के चंपारण आने तक के पूरा इतिहास को अपनी लेखनी के माध्यम से अच्छे बुरे प्रभाव को खंगालते हैं। इस परिचय के संदर्भमें कहीं भी कला संस्कृति उसकी भाषा उनकी आंखों से ओझल नहीं हो पाती।
अंत में गंडक की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि ओ सदानीरा ! वह चक्रा ओ नारायणी ओ महामंडक युगो से दिन-हीन जनता इन विभिन्न नामों में तुझे संबोधित करती रही है। और तेरे पूजन के लिए जिस मंदिर की प्रतिष्ठा हो रही है उसकी नींव बहुत गहरी और मजबूत है इसे तू ठुकरा न पाएगी।

सब्जेक्टिव –

1. चंपारण क्षेत्र में बाढ़ की प्रचंडता के बढ़ने के क्या कारण है?
उत्तर- चंपारण क्षेत्र में बाढ़ का प्रमुख कारण जंगलों का कटना है जंगलों के वृक्ष जल राशि को अपनी जड़ों में थामें रहते हैं नदियों को उन्मुक्त नवयौवना बनाने से रोकते हैं उत्ताल वृक्ष नदी की धाराओं की गति को भी संतुलित करने का काम करते हैं यदि जल राशि नदी की सीमाओं से ज्यादा हो जाती है तब बाढ़ आती ही है लेकिन जब बीच में उनकी शक्तियों को ललकारने वाले ये गगनचुंबी तन न हो तब नदिया प्रचंड काली का रूप धारण कर लेती है वृक्ष उस प्रचंडिका को रोकने वाले हैं आज चंपारण में वृक्ष को काटकर कृषि युक्त समस्त भूमि बना दी गई है अब उन्मुक्त नवयौवना को रोकने वाला कोई न रहा इसलिए अपनी ताकत का अहसास कराती है लगता है मानों मानव के कामों को रोकने के लिए उसे दंड देने के लिए नदी में भयानक बाढ़ आते हैं।

2. इतिहास की क्रीमिआई प्रक्रिया का क्या आशय है?
उत्तर- क्रीमिआई प्रक्रिया पारे को सोने में बदलने की एक प्रक्रिया है जिसमें पारे को कुछ विलेपनों के साथ उच्च तापक्रम पर गर्म किया जाता है। लेखक ने पाठ के संदर्भ में क्रीमिआई प्रक्रिया का आशय देते हुए कहा है कि जिस प्रकार पास दूसरे प्रकार का पदार्थ है और उसे कुछ पदार्थों के संगम से विल्कुल भिन्न पदार्थ का उद्भव हो जाता है उसी तरह सुदूर दक्षिण की संस्कृति और रक्त इस प्रदेश की निधि बनकर एक अन्य संस्कृति का निर्माण कर गए।

3. थांगड शब्द का क्या आशय है?
उत्तर- धांगड शब्द का अर्थ ओरांव भाषा में है- भाड़े का मजदूरा थांगड एक आदिवासी जाति है जिसे 18वीं शताब्दी के अंत में नील की खेती के सिलसिले में दक्षिण बिहार के छोटा नागपुर पठार के चंपारण के इलाके में लाया गया था। धांगड जाति आदिवासी जातियां-ओसंत मुंडा लोहार इत्यादि के वंशज है लेकिन ये अपने आप को आदिवासी नहीं मानते हैं। धांगड मिश्रित ओरांव भाषा में बात करते हैं और दूसरे के साथ भोजपुरिया मधेसी भाषा में। धांगड़ो का सामाजिक जीवन बेहद उल्लासपूर्ण है स्त्री-पुरुष ढलती शाम के मंद प्रकाश में अत्यंत मनोहारी सामहिक नृत्य करते हैं।

4. गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली?
उत्तर- गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने इसलिए दिलचस्पी नहीं ली ताकि दक्षिण बिहार के बागी विचारों का असर चंपारण में देर से पहुंचे। इस तरह चंपारण पर वर्षों तक ब्रिटिश साम्राज्य की छत्रछाया वाला शासन चलता रहा।

5. चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गांधी जी ने क्या किया?
उत्तर चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गांधी जी ने अनेकों काम किस उनका विचार था कि ग्रामीण बच्चों की शिक्षाकी व्यवस्था किए बिना केवल आर्थिक समस्याओं को समझाने से काम नहीं चलेगा इसके लिए उन्होंने तीस्थ गांव में आश्रम विद्यालय स्थापित किया बड़हरवा मधुबन और भितिहरवा। कुछ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तीनों गांवों में तैनात किया बड़हस्वा के विद्यालय में श्री बवन जी गोस्वले और उनकी पत्नी विदुषी अवंतिकाबाई गोखले ने चलाया।मधुबन में नरहरिदास पारिख और उनकी पत्नी कस्तूरबा तथा अपने सेक्रेटरी श्री महादेव देसाई को नियुक्त किया। भितिहरवा में वयोवृद्ध डॉक्टर देव और सोपन जी ने चलाया। बाद में पुंडारिक जी गए स्वयं कस्तूरबा विद्यालय आश्रम में रही और इन कर्मठ और विद्वान स्वयंसेवकों की देखभाल की।

6. गांधीजी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे?
उत्तर- गांधीजी शिक्षा का मतलब सुसंस्कृत बनाने और निष्कतुष चरित्र निर्माण समझते थेो अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आचार्य पंक्ति के समर्थक थे अर्थात बच्चे सुसंस्कृत और निष्कलुष चरित्र वाले व्यक्तियों के सान्निध्य से ज्ञान प्राप्त करा अक्षर ज्ञान को वे इस उद्देश्य की प्राप्ति में विधेय मात्र मानते थे। वर्तमान शिक्षा पद्धति को वे खौफनाक और हेय मानते थे क्योंकि शिक्षा का मतलब है बौद्धिक और चारित्रिक विकास लेकिन यह पद्धति उसे कुंठित करती है। इस पद्धति में बच्चों को पुस्तक स्टाया जाता है ताकि आगे चलकर वह क्लर्क का काम कर सके उनका सर्वागीण विकास से कोई सरोकार नहीं है। गांधीजी जीविका के लिए नये साधन सीखने के इच्छुक बच्चों के लिए औद्योगिक शिक्षा के पक्षधर थे। तात्पर्य नहीं था कि हमारी परंपरागत व्यवसाय में वोट है वरन् यह कि हम ज्ञान प्राप्त कर उसका उपयोग अपने पेशे और जीवन को परिष्कृत करने में करें।

7. पुंडलीक जी कौन थे ?
उत्तर- पुंडलीक जी भितिहस्वा आश्रम विद्यालय के शिक्षक थे। गांधी जी ने उन्हें बेलगांव से सन 1917 में बुलाया था शिक्षा देने और ग्रामीणों के भयारोहरण के लिएश पुंडलीक जी गांधीजी के आदशों को सच्चे दिल से मानने वाले बड़े ही निर्भय पुरुष थे पहले एक कायदा था कि साहब जब आए तो गृहपति उसके घोड़े की लगाम पकड़े। एक दिन एमन साहब जो उस समय बड़े अत्याचारी थे आए तो पुंडलिक जी ने कहा नहीं आना है तो मेरी कक्षा में आए मैं तमाम पकड़ने नहीं जाऊंगा। पुंडलिक जी ने गांधी जी से सीस्ती निर्भीकता गांव वालों को दी। यही निर्भीकता चंपारण अभियान की सबसे बड़ी देन है।

9. वसुंधरा भोगी मानव और धर्माथ मानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति जगदीशचंद्र माथुर ने मनुष्य की पाशिवक प्रवृत्ति एवं दूषित मानसिकता का वर्णन किया है एक तरफ मनुष्य जंगल काटे जा रहा है खेतों को पशु पक्षियों आदी को नष्ट कर रहा है नदियों पर बांध बनाकर उसे नष्ट कर रहा है तो दूसरी और धर्माध मानव गंगा को मझ्या कहता है पर अपने घर की नाली कूड़ा करकट पूजन सामग्री जो प्रदूषण ही फैलाते हैं गंगा नदी में प्रवाहित करता है इस प्रकार दोनों इस प्रकृति को नष्ट करने में लगे हुए हैं इसलिए कहा जाता है कि वसुंधरा भोगी मानव और धर्माधमानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

10. कैसी है चंपारण की यह भूमि? मानो विस्मृति के हाथों अपनी बड़ी से बड़ी नदियों को सौंपने के लिए प्रस्तुत करती है?
उत्तर- चंपारण की यह गौरवशाली भूमि महान है। यहां अनेक आक्रमणकारी तथा बाहरी व्यक्ति आए है उन्होंने या तो इस पावन भूमि को क्षति पहुंचाई या आकर बस गए किंतु धन्य है इसकी सहनशीलता एवं उदारता इसने उन सब को भुला दिया क्षमा कर दिया ऐसा प्रतीत होता है कि इसने विस्मृति के हाथों अपनी बड़ी से बड़ी निधियों को सौंप दिया इसमें किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं किया स्वयं को उन आततायियों के हाथों समर्पित कर दिया उन्हें अपनी निधियों से समृद्ध किया।

11.  चौर और मन किसे कहते हैं? वे कैसे बने और उनमें क्या अंतर है?
उत्तर- चंपारण में गंडक घाटी के दोनों और विभिन्न आकृतियों के तात दिख पड़ते हैं यह कहीं उथले तो कहीं गहरे हैं सभी प्रायः टेढ़े मेढ़े किंतु शुभ एवं निर्गत जल से पूर्ण है इन तालों को चौर और मन कहते हैं। चौर उथले ताल होते हैं जिसमें पानी जाड़ो और गर्मियों में कम हो जाता है। इनके द्वारा खेती भी होती है मन विशाल और गहरे ताल है। मन शब्द मानस का अपभ्रंश है ये मन और चौर गालों गंडक के उच्छृंखल नर्तन के समय बिखरे हुए आभूषण है जब बाढ़ आती है तो तटों का उल्लंघन कर नदी दूसरा पथ पकड़ लेती है पुराने पथ पर रह जाते हैं। ये चौर और मन जिनकी घर गहराई तल को स्पर्श कर धरती के हृदय से स्रोत को फोड़ लाई।

12. कपिलवस्तु से मगध के जंगतों तक की यात्रा बुद्ध ने किस मार्ग से की थी?
उत्तर- लौरिया नंदनगढ़ से एक नदी रामपुरवा और भितिहरवा होते हुए उत्तर में नेपाल के लिए भिस्वना थोरी तक जाती है उस नदी का नाम है परंडा इसी के सहारे भगवान बुद्ध ने कपिल से मगध तक की यात्रा की थी। लौरिया नंदनगढ़ में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया हुआ कलापूर्ण स्तंभ है।

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