अर्द्धनारीश्वर पाठ के सारांश 12th हिंदी
राष्ट्रकवि दिनकर अर्द्धनारीश्वर निबंध के माध्यम से यह बताते हैं कि नर नारी पूर्ण रुप से समान है एवं उनके एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकता है अर्थात नरो में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती है बल्कि उसकी पूर्णता में वृद्धि होती है दिनकर को यह रुप कहीं देखने को नहीं मिलता है इसलिए वे क्षुब्ध है उनका मानना है कि संसार मैं सर्वत्र पुरुष और स्त्री है वह कहते हैं कि नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नेतृत्व में बटृ लगेगा इसी प्रकार पुरुष समझता है कि स्त्रीयोचित गुण अपनाकर वह स्त्रैण हो जाएगा इस विभाजन से दिनकर दुखी है यही नहीं भारतीय समाज को जानने वाले तीन बड़े चिंताको रविंद्रनाथ प्रेमचंद्र प्रसाद के चिंतन से भी दुखी है दिनकर मानते हैं कि यदि ईश्वर ने आपस में धूप और चांदनी का बंटवारा नहीं किया तो हम कौन होते हैं आपसी गुणों को बांटने वालो वे नारी के पराधीनता का संरक्षित इतिहास बताते हैं संदर्भ में कहते हैं कि पुरुष वर्चस्ववादी तरीके अपनाकर नारी को गुलाम बना लिया है जब कृषि व्यवस्था का आविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा यहां से जिंदगी दो टुकड़ों में बट गई नारी पराधीनता होकर अपने समस्त मूल्य भूल गई अपने अस्तित्व की अधिकारी भी नहीं रही उसे यह लगने लगा कि मेरा स्थिति पुरुष को होने से है समाज में भी नारी को भोग्य समझकर उसका उपभोग खूब किया वसुंधरा भोगियो ने नर और नारी एक ही द्रव की दली दो प्रतिभाएं है जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है अतः अर्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नर और नारी जब तक अलग है तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात का भी कि प्रतिक हैं कि पुरुष में नारित्व की ज्योति जगे बल्कि यह कि प्रत्येक नीरी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो।