संपूर्ण क्रांति
[जयप्रकाश नारायण] भाषण
पाठ के सारांश
संपूर्ण क्रांति शीर्षक अंश 5 जून 1974 के पटना के गांधी मैदान में दिए गए जयप्रकाश नारायण के भाषण का एक अंश है। संपूर्ण भाषण स्वतंत्र पुस्तिका के रूप में जनशक्ति पटना से प्रकाशित हैं इनका भाषण संपूर्ण जनता मंत्रमुग्ध होकर सुनती रही। भाषण के बाद लोगों के हृदय में क्रांतिकारी विचार धधक उठे और आंदोलन के विराट रूप धारण कर लिया। पटना के गांधी मैदान में फिर न वैसी भीड़ इकट्ठी हुई और न वैसा कोई प्रेरक भाषण हुआ। • अपने भाषण के प्रारंभ में जयप्रकाश नारायण ने युवाओं को संकेत देते हुए कहा है कि हमें स्वराज तो मिल गया है लेकिन सुशासन के लिए हमें अभी काफी संघर्ष करने होंगे। भाषण के क्रम में उन्होंने नेहरू जी का उदाहरण दिया नेहरू जी कहते थे कि सुशासन के लिए देश की जनता को अभी मीलों जाना है। कठिन परिश्रम करने हैं त्याग करने हैं जेपी ने कहा कि अभी समाज में भूख महंगाई भ्रष्टाचार जैसे दानव वर्तमान है उनसे हमें लड़ना होगा आंदोलन करना होगा इसके लिए जनता को तैयार होना होगा।
आंदोलन को सफल बनाने हेतु उन्होंने युवाओं को आगे आकर नेतृत्व करने की सलाह दी उन्होंने यूथ फॉर डेमोक्रेसी का आहवान किया। लोगों के आग्रह पर उन्होंने आंदोलन के नेतृत्व का दायित्व अपने कंधे पर ले लिया उन्होंने जनसंघर्ष समितियों का गठन किया। जेपी ने अपने भाषण में अमेरिका प्रवास की बात कही हैं अमेरिका में वह मजदूरी कर पढ़ते थे। पढ़ाई के क्रम में वे घोर कम्युनिस्ट बन गए। जमाना लेनिन का था। अतः लेनिन के विचारों से प्रभावित थे लेनिन के मरने के बाद घोर मार्क्सवादी बन गए। अमेरिका से लौटकर वे कांग्रेस में दाखिल हो गये। वे कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं गये इसका कारण उन्होंने देश की गुलामी माना। जेपी आंदोलन के क्रम में जो सभा हुई थी। उस सभा को विफल बनाने में कांग्रेस सरकार ने कौन-कौन से हथकंडे अपनाए इसकी भी चर्चा उन्होंने अपने भाषण में की है। लोगों को ट्रेनों से उतारा गया। लाठियां चलाई गई जेपी ने इसे लोकतंत्र पर कलंक माना। वह उन लोगों को लोकतंत्र का दुश्मन मानते हैं जो शांतिमय कार्यक्रमों में बाधा डालते हैं वे इंदिराजी की चर्चा करते हैं उनके अनुसार उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति से नहीं बल्कि उनकी गलत नीतियों से उनके गलत सिद्धांतों से है उनके गलत कार्यों से है।
भाषण के क्रम में वे बाबू एवं जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा करते हैं। वे गांधी जी का विरोध भी करते थे क्योंकि वे घोर कम्युनिस्ट जो थे। नेहरू जी को वे भाई कहा करते थे। अपने भाषण में भी नेहरू की विदेश नीति के विरुद्ध की चर्चा करते हैं। राष्ट्रीय नीति पर उनका नेहरू जी से कोई मतभेद नहीं था। भाषण के क्रम में उन्होंने दलविहीन लोकतंत्र की चर्चा की है लेकिन जेपी आंदोलन में दलविहीन लोकतंत्र की घोषणा नहीं करना चाहते थे। वे जनता की भावनाओं के विरोध जाना नहीं चाहते थे। भाषण के क्रम में केवल उन्होंने मार्क्सवाद की चर्चा की है साम्यवाद एवं दलविहीन एवं राजविहीन समाज में संबंधों की चर्चा जेपी ने की। अपने ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वह संपूर्ण क्रांति चाहते हैं। देश का सामाजिक आर्थिक एवं नैतिक बदलाव ही संपूर्ण क्रांति है। इस संपूर्ण क्रांति को लाने में जनसंघर्ष समितियों की भूमिका की चर्चा उन्होंने अपने भाषण में की है। उनके अनुसार दलविहीन संघर्ष समितियां ही विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय करेगीं। साथ ही जनप्रतिनिधियों पर इन संघर्ष समितियों का ही नियंत्रण होगा। जनप्रतिनिधि निरंकुश न हो इसका ध्यान जन समितियों को रखना होगा। यह संघर्ष समितियां स्थायी रूप से कार्य करेगी। साथ ही ये समितियां केवल लोकतंत्र के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक आर्थिक और नैतिक क्रांति के लिए अथवा संपूर्ण क्रांति के लिए कार्य करेगी।
1. आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे, आंदोलन का नेतृत्व वे किस शर्त पर स्वीकार करते हैं?
उत्तर-: आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण कहते हैं मैं सब की सलाह लूंगा सब की बात सुनूंगा छात्रों की बात जितना भी ज्यादा होगा जितना भी समय मेरे पास होगा उनसे बहस करूंगा समझंगा और अधिक से अधिक बात करूंगा आपकी बात स्वीकार करूंगा जनसंघर्ष समितियों की लेकिन फैसला मेरा होगा इस फैसले को मानना होगा और आप को मानना होगा जयप्रकाश आंदोलन का नेतृत्व अपने फैसले पर मानते हैं और कहते हैं कि तब तो इस मूर्तियों का कोई मतलब है तब यह कांति सफल हो सकती है और नहीं तो आपस में बहसों मैं पता नहीं हम किधर विखर जाएंगे और क्या नतीजा निकलेगा |
2. जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और अमेरिका प्रवास का परिचय दें। इस अवधि की कौन सी बातें आप को प्रभावित करती हैं?
उत्तर-: जयप्रकाश नारायण बताते हैं कि 1921 ई. कि जनवरी महीने में पटना कॉलेज में वे आई.ए.सी के छात्र थे उसी समय वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन के आवाहन पर असहयोग किया। और असहयोग के करीब डेढ़ वर्ष ही मेरा जीवन बिता था । कि मैं फूलदेव सहाय वर्मा के पास भेज दिया गया कि प्रयोगशाला में कुछ करो और सीखो मैंने हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला इसलिए नहीं लिया क्योंकि विश्वविद्यालय को सरकारी मदद मिलती थी बिहार विद्यापीठ से परीक्षा पास की बचपन में स्वामी सत्यदेव के भाषण से प्रभावित होकर अमरीका गया ऐसे में कोई धनी घर का नहीं था परंतु मैंने सुना था कि कोई भी अमेरिका में मजदूरी करके पड़ सकता है मेरी इच्छा थी कि आगे पढ़ना है मुझे अमेरिका के बागानों में जयप्रकाश ने काम किया कारखानों में काम किया लोहे के कारखानों में जहां जानवर मारे जाते हैं उन कारखानों में काम किया जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ते ही तो वे छुट्टियों में काम कर इतना कमा लेते थे कि दो चार विद्यार्थी सस्ते में खा पी लेते थे एक कोठरी में कई आदमी मिलकर रहते थे। बराबर दो-तीन वर्षों तक दो तीन लड़के एक ही रजाई में सोकर पढ़े थे। इस तरह अमेरिका में इनका प्रवास रहा |
3. जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं शामिल हुए?
उत्तर- जयप्रकाश ने लेनिन से सीखा था कि जो गुलाम देश है वहां के जो कम्युनिस्ट है उनको हरगिज वहां की आजादी की लड़ाई से अपने को अलग नहीं रखना चाहिए क्योंकि लड़ाई का नेतृत्व बुजुर्वा क्लास के हाथ में होता हैं। पूंजीपतियों के हाथ में होता है अतः कम्युनिस्टों को •अलग नहीं रहना चाहिए अपने को आइसोलेट नहीं रहना चाहिए। जयप्रकाश देश की आजादी के खातिर कांग्रेस में शामिल हुआ क्योंकि कांग्रेस देश का नेतृत्व कर रही थी
4. बापू और नेहरू की किस विशेषता का उल्लेख जेपी ने अपने भाषण में किया है?
उत्तर-: जयप्रकाश कहते हैं कि जब हम नौजवान थे तब उस जमाने में यह जुर्रत होती थी लोगों की बापू के सामने हम कहते थे कि हम नहीं मानते हैं बापू यह बात और बापू में इतनी महता थी। इतनी महानता थी कि वह बुरा नहीं मानते थे फिर भी बुला कर हमें प्रेम से समझाना चाहते थे समझते थे जेपी कहते हैं कि जवाहरलाल मुझे मानते बहुत से मैं उनका बड़ा आदर और प्रेम करता था। परंतु उनकी कटु आलोचना भी करता था उनमें बड़प्पन था। अक्सर वे हमारी आलोचनाओं का बुरा नहीं माना उनके साथ जो मतभेद था वह बड़ा पराराष्ट्र की नीतियों को लेकर था |
5. भ्रष्टाचार की जड़ क्या हैं? क्या आप जेपी से सहमत है इसे दूर करने के लिए क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-: भ्रष्टाचार की जड़ सरकार की गलत नीतियां हैं। इन गलत नीतियों के कारण भूख है महंगाई हैं भ्रष्टाचारी कोई काम नहीं जानता का निकलता है बगैर रिश्वत दीए। सरकारी दफ्तरों में बैंकों में हर जगह टिकट लेना है उसमें जहां भी हो रिश्वत के बगैर काम नहीं जानता का होता। हर प्रकार के अन्याय के नीचे जनता दब रही है शिक्षा संस्थाएं भ्रष्ट हो रही हैं हमारे नौजवानों का भविष्य अंधेरे में पड़ा हुआ है जीवन उनका नष्ट हो रहा है इस प्रकार चारों और भ्रष्टाचार व्याप्त है इसे दूर करने के लिए समाजवादी तरीके से सरकार ऐसी नीतियों बनाए जो लोगकल्याणकारी हो |
6. दलविहीन लोकतंत्र और साम्यवाद में कैसा संबंध है?
उत्तर-: दलविहीन लोकतंत्र सर्वोदय विचार का मुख्य राजनीतिक सिद्धांत है और ग्राम सभाओं के आधार पर दलविहीन प्रतिनिधित्व स्थापित हो। दलविहीन लोकतंत्र तो मार्क्सवाद तथा लेनिनवाद के मूल उद्देश्यों में से हैं। मार्क्सवाद के अनुसार समाज जैसे-जैसे साम्यवाद की ओर बढ़ता जाएगा वैसे वैसे राज्य स्टेट का क्षय होता जाएगा और अंत में एक स्टैंटलेस सोसायटी कायम होगी। वह समाज अवश्य ही लोकतांत्रिक होगी बल्कि उसी समाज में लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप प्रकट होगी और वह लोकतंत्र निश्चय ही दलविहीन होगा |
7. सप्रंसग व्याख्या ?
1. अगर कोई डेमोक्रेसी का दुश्मन है तो वे लोग दुश्मन हैं जो जनता के शांतिमय कार्यक्रमों में बाधा डालते हैं उनकी गिरफ्तारियां करते हैं उन पर लाठी चलाते हैं गोलियां चलाते हैं?
उत्तर-: प्रस्तुत पंक्ति महान समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति शीर्षक भाषण से ली गई है। इन पंक्तियों में जयप्रकाश नारायण ने लोकतंत्र के दुश्मनों का वर्णन किया है जयप्रकाश तत्कालीन सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए यह बताते कहते हैं प्रश्न यह है कि एक पुलिस के उच्च अधिकारी ने कहा कि नाम लेना यहां ठीक नहीं होगा कि मैंने दीक्षित जी के मुंह से सुना है कि जयप्रकाश नारायण नहीं होते तो बिहार जल गया होता तब जयप्रकाश नारायण यह सोचते हैं कि यह सारा जयप्रकाश के लिए क्यों होता है? उनके नेतृत्व में यह प्रदर्शन और यह सभा होने वाली है क्यों लोगों को रोकते हैं आम जनता से घबराते हैं आप जनता के प्रतिनिधि है किसकी तरफ से शासन करने बैठे हैं आप आपकी हिम्मत कि पटना आने से लोगों को रोक ले आप यहां लोकतंत्र है और लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को शांतिपूर्ण सभा करने का अधिकार है यदि सरकार यह सब करने से रोकती है तो वह सरकार के निकम्मेपन और नीचता का प्रतीक है
2. व्यक्ति से नहीं हमें तो नीतियों से झगड़ा है सिद्धांतों से झगड़ा है कार्यों से झगड़ा है?
उत्तर-: प्रस्तुत वाक्य जयप्रकाश नारायण के भाषण संपूर्ण क्रांति से लिया गया है। आंदोलन के समय जयप्रकाश नारायण के कुछ ऐसे मित्र थे जो चाहते थे कि जेपी और इंदिरा जी में मिल मिलाप हो जाए।इसी प्रसंग में जेपी ने कहा है कि उनका किसी व्यक्ति से झगड़ा नहीं है चाहे वह इंदिरा जी हो या कोई और उन्हें तो नीतियों से झगड़ा है सिद्धांतों से झगड़ा है कार्यों से झगड़ा है जो कार्य गलत होंगे जो नीति गलत होगी जो सिद्धांत गलत होंगे चाहे वह कोई भी करें वह विरोध करेंगे |