शिक्षा सारांश vvi long question

WhatsApp Channel Join Now
Telegram channel Join Now
Instagram ID Follow me

शिक्षा सारांश class-12th Hindi (हिंदी)

जे कृष्णमूर्ति मानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य भी यही है मनुष्य को पूरी तरह भारहीन स्वतंत्र और
प्रज्ञा निर्भय बनाना है तभी उसने सच्चा सहयोग सदभाव प्रेम और करुणा सच्चा दायित्व बोध कराती है। हमे गहरा बनाती है वह हमें सीमाओं और संकीर्णताओं से उबारती है। शिक्षा का ध्येय पेशेवर छता दक्षता आजीविका और महज कुछ कर्म कौशल ही नहीं उसका ध्येय प्रचलित प्रणालियों का भीतर बाहर से पर्यालोचन करते हैं। कृष्णमूर्ति प्रायः लिखते नहीं थे। वे बोलते संभाषण करते थे। प्रश्नकर्ताओं को उत्तर देते थे। यह शैली भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अत्यंत प्राचीन है शिक्षा नामक संभाषण की जरिए उनके विचारों एवं शिक्षा से लाभ की प्रेरणा मिलती है।
जे कृष्ण मूर्ति मानते हैं कि शिक्षा मनुष्य का उन्नयन करती है। वह जीवन के सत्य जीवन जीने के तरीके में मदद करती है इस संदर्भ को देते हुए वे बताते हैं कि शिक्षक हो या विद्यार्थीउन्हें यह पूछना आवश्यक नहीं कि वो क्यों शिक्षित हो रहे हैं। क्योंकि जीवन विलक्षण ह ये पक्षी ये फूल ये वैभवशाली वृक्ष ये आसमान ये सितारे ये सरिताए हैं ये मत्स्य यह सब हमारा जीवन है। जीवन समुदायों जातियों और देश का पारस्परिक सतत संघर्ष है जीवन ध्यान है जीवन धर्म भी है जीवन गूढ़ है जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएं हैं। ईर्ष्याए महत्वाकांक्षाएं वासनाएं भय सफलताएं चिंताएं। शिक्षा इन सब का अनावरण करती हैं शिक्षा का कार्य है कि वह संपूर्ण जीवन प्रक्रिया को समझाने में हमारी सहायता करें न किस हमें केवल कुछ व्यवसाय या ऊंची नौकरी के योग्य बनाएं। कृष्णमूर्ति कहते हैं कि हमें बचपन से ही ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जहां भय का वास ना हो नहीं तो व्यक्ति जीवन भर कुंठित हो जाती है। उसकी महत्त्वाकांक्षाएं दबकर रह जाती है मेधा शक्ति दब जाती है मेघा शक्ति के बारे में कहते हैं कि मेघा वह शक्ति है जिससे आप भय और सिद्धांतों की अनुपस्थिति में आप स्वतंत्रता से सोचते हैं ताकि आप सत्य की वास्तविकता कि अपने लिए कुछ कर सके पूरा विश्व इस भय से सहमा हुआ है। क्योंकि यह दुनिया वकीलों सिपाहियों और सैनिकों की दुनिया है। यहां प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी के विरोध में खड़ा है किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के लिए प्रतिष्ठा सम्मान शक्ति व आराम के लिए संघर्ष कर रहा है अतः निर्विकार रूप से शिक्षा का कार्य है कि वह इस अतिरिक्त और बाह्य भय का उच्छेदन करें।

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page