Class 12th Hindi chapter 4 || Class 12th Hindi अर्धनारीश्वर
अर्धनारीश्वर पाठ सारांश
अर्धनारीश्वर = रामधारी सिंह दिनकर
जन्म = 23 सितंबर 1908
निधन = 24 अप्रैल 1974
निवास = बेगूसराय (बिहार)
राष्ट्रकवि दिनकर अर्धनारीश्वर निबंध के माध्यम से यह बताते हैं कि नर-नारी पूर्ण रूप से समान है। एवं उनके एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात नरों में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होता ,बल्कि उसकी पूर्णता में वृद्धि होती है। दिनकर को यह रुप नहीं देखने को मिलता है। उनका मानना है कि संसार में सर्वत्र पुरुष और स्त्री है वह कहते हैं कि नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नेतृत्व में बट्टा लगेगा। इस प्रकार पुरुष समझता है कि स्त्रियोंचित गुन अपनाकर वह स्त्रैण हो जाएगा। इस विभाजन से दिनकर दुखी है
यही नहीं भारतीय समाज को जानने वाले तीन बड़े चिंताको रविंद्रनाथ प्रेमचंद प्रसाद के चिंतन से भी दुखी है। दिनकर मानते हैं कि यदि ईश्वर ने आपस में धूप और चांदनी का बंटवारा नहीं किया तो हम कौन होते हैं अपनी गुणों को बांटने वाले वह नारी के पराधीनता का संक्षिप्त इतिहास बताने के संदर्भ में कहते हैं जब कृषि व्यवस्था का अविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा।
यहां से जिंदगी दो टुकड़े में बट गई नारी पराधीन होकर अपने समस्त मूल्य भूल गई। अपने अस्तित्व की अधिकारी भी नहीं रही। उसे यह लगने लगा कि मेरा अस्तित्व पुरुष को होने से है समाज ने भी नारी को भोग्या समझ कर उसका उपभोग खुब किया। दिनकर मानते हैं कि नर और नारी एक ही द्रव की दली दो प्रतिभाएं हैं। जिसे भी पुरुष सपना कर्मक्षेत्र मानता है वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। अतः अर्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक है तब तक दोनों अधूरे हैं इस बात का भी की जिस पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे। बल्कि यह की प्रत्येक नारी में भी और उसका स्पष्ट आभास हो।
Subjective Question
1. प्रवृतिमार्ग और निवृत्तिमार्ग क्या है?
उत्तर- पुरुषों की मान्यता है कि नारी आनंद की खान है। जो पुरुष जीवन से आनंद चाहते थे। उन्होंने नारी को गले लगाया। वे प्रवृत्ति मार्ग है अर्थात् जिस मार्ग के प्रचार से नारी की पद-मर्यादा उठती है उसे प्रवृत्ति मार्ग कहा गया निवृत्तिमार्ग वे है जिन्होंने अपने जीवन के साथ नारी को भी ढकेल दिया क्योंकि नारी उनके किसी काम की चीज नहीं थी। इसके लिए उन्होंने सन्यास ग्रहण किया और वैयक्तिक मुक्ति की खोज को जीवन का सबसे बड़ा साधन माना सन्यासी मार्ग ही निवृत्ति मार्ग है।
2. बुद्ध ने आनंद से क्या कहा ?
उत्तर- आनंद’ मैंने जो धर्म चलाया था वह पाँच सहस्त्र वर्ष तक चलने वाला चलने वाला, किंतु अब वह पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है।
3. यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती तो बहुत संभव था कि महाभारत नमचता। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं अपना पक्ष में रखें?
उत्तर- रामधारी सिंह दिनकर लेखक नारी के गुण की चर्चा करते हुए कहते हैं कि दया माया सहिष्णुता और भीरूता नारी के गुण है।इस गुण के कारण नारी विनम्र और दयावान होती है इस गुण का अच्छा पक्ष यह है कि यदि पुरुष इन गुणों को अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बचा जा सकता है पुरुष सदियों से अपने आप को शक्तिशाली मानता आया है उसने नारियों को घर की चारदीवारी में सीमित किया घर का जीवन सीमित और बाहर की जीवन और असीमिता पुरुष इतना कर्कश और कठोर हो उठा कि अपना रक्त बहाते समय कुछ नहीं सोचता कि क्या होने वाला है स्त्रियों के गुण दया माया सहिष्णु और भीरूता पुरुषों के गुण पौरूष इत्यादि उनके विपरीत है
4. रविंद्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचंद के चिंतन से दिनकर क्यों असंतुष्ट है?
उत्तर- रविंद्र नाथ प्रसाद और प्रेमचंद्र के चिंतन में दिनकर और असंतुष्ट इसलिए है कि वे अर्द्धनारीश्वर रूप उनके चिंतन में कहीं प्रकट नहीं हुआ बल्कि नारी को नीचा दिखाने उसे अधीन करने की ही बात कही गई है दिनकर मानते हैं कि अर्द्धनारीश्वर की कल्पना से इस बात के संकेत है कि नर नारी पूर्ण रूप से समान है एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते दिनकर पाते हैं कि यह दृष्टि रविंद्र नाथ के पास नहीं है वे नारी के गुण यदि पुरुष में आ जाए तो उसको दोष मानते हैं नारियों को कोमलता ही शोभा देती है वह कहते हैं कि नारी की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहक और आकर्षक होने में है केवल पृथ्वी की शोभा केवल आलोक केवल प्रेम की प्रतिमा बनने में है
5. नारी की पराधीनता कब से आरंभ हुई ?
उत्तर- नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा यहां से जिंदगी दो टुकड़ों में बट गई घर का जीवन सीमित और बाहर का जीवन विस्तृत होता गया। जिससे छोटी जिंदगी बड़ी जिंदगी के अधिकाधिक अधीन हो गई नारी की पराधीनता का यह संक्षिप्त इतिहास है।
@ सप्रसंग व्याख्या करें ?
1. प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहना चाहता है कि जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लताएं फलती फूलती है उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है वह पुरुष के पराधीन है इस कारण नारी का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया उसके सुख और दुख प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा यहां तक कि जीवन और मरण भी पुरुष की मर्जी पर हो गए उसका सारा मूल्य इस बात पर जा ठहरा है कि पुरुषों की इच्छा पर वह है वृक्ष की लताएं वृक्ष के चाहने पर ही अपना पर फैलाती है उसी प्रकार स्त्री ने भी अपने को आर्थिक पंगु मानकर पुरुष को अधीनता स्वीकार कर ली और यह कहानी को विवश हो गई कि पुरुष के अस्तित्व के कारण ही मेरा अस्तित्व है
2. जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
उत्तर- यह पंक्ति रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गई है निबंधकार दिनकर कहते हैं कि नारी में दया, मया, सहिष्णुता और भीरूता जैसे स्त्रियोचित गुण होते हैं इन गुणों के कारण नारी विनाश से बची रहती है यदि इन गुणों को पुरुष अंगीकार कर ले तो पुरुष के पौरूष में कोई दोष नहीं आता और पुरुष नारीत्व से पूर्ण हो जाता है इसलिए निबंधकार अर्द्धनारीश्वर की कल्पना करता है जिससे पुरुष स्त्री का गुण और स्त्री पुरुष का गुण लेकर महान बन सके प्रकृति ने नर नारी को सामान बनाया है पर गुणों में अंतर है अतः निबंधकार नारीत्व के लिए एक महान पुरुष गांधीजी का हवाला देता है कि गांधी जी ने अंतिम दिनों में नारीत्व की ही साधना की थी।
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