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प्रगीत और समाज class 12th Subjective question

प्रगीत और समाज class 12th Subjective question 

सारांश 

कविता संबंधित सामाजिक प्रश्न- कविता पर समाज का दबाव तीव्रता से महसूस किया जा रहा है। प्रमीत काव्य समाज शास्त्रीय विश्लेषण और सामाजिक व्याख्या के लिए सबसे कठिन चुनौती स्तता से लेकिन प्रगीतधर्मी कविताएं सामाजिक यथार्थ की अधिक पसंद नहीं करते थे इसलिए आख्यानक काव्यों की रचना से संतोष व्यक्त करते थे।मुक्तिबोध की कविताएं- नई कविता के अंदर आत्मपरक कविताओं की ऐसी प्रबल प्रवृत्ति थी जो या तो समाज निस्पेक्ष थी या फिर जिसकी समाजिक अर्थवता समिति थी।

इसलिए व्यापक काव्य सिद्धांत की स्थापना के लिए मुतियो की कविताओं का समावेश आवश्यक था लेकिन मुक्तिम्योधने केवल लंबी कविताएं ही नहीं तिभी उनकी अनेक कविताएं छोटी भी है जो कि कम सार्थक नहीं है मुक्तिबोध का समया काव्य मुलतः आत्मपरक है। साना विन्यास में कहीं यह पूर्णतः बाटयधी है। कहीं नाटकीय का लाभ है कहीं नाटकीय प्रगीत है और कहीं शुट प्रमीत भी है। आत्मपरकता तथा भावमयता सुतिन्योथ की शक्ति है जो उनकी प्रत्येक कविता को मति और ऊर्जा प्रदान करती है। चरम आत्मपरकता के रूप में ही व्याक होता है।त्रिलोचन तथा नागार्जुन का काव्य- त्रिलोचन ने कुछ चरित्र कैटित लंबी वर्णनात्मक कविताओं के अलावा ज्यादातर छोटे-छोटे भीत ही लिस्खे हैं। लेकिन जीवन जगत और प्रकृति के जितने रंग-बिरंगे चित्र त्रिलोचन के काव्य ससार में मिलते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ हैं वहीं नामार्जुन की आक्रामक काव्य प्रतिभा के बीच आत्मपरक प्रगीतात्मक अभिव्यक्ति के क्षण कम ही आते हैं।

लेकिन जब आते हैं तो उनकी विकट तीव्रता प्रमीतों के परिचय संसार को एक झटके में किन्न-भिन्न क देती है। प्रमीत काव्य के प्रसंग में मुक्ति को त्रिलोचन और नागार्जुन का उल्लेख एक नया प्रमीतमर्मी कवि- व्यक्तित्व है। विभिन्न कवियों द्वाम प्रगीतों का निर्माण सद्यपि हमारे माहित्य काव्योत्कर्ष के मानदंड प्रबंध काव्य के आधार पर बने हैं। लेकिन वहां की कविता का इतिहास मुख्यतः प्रणीत मुक्तकों का है। कबीर सूर मीस नानक रैदास आदि संतों के प्रायः दोहे तथा मेय पद ही लिखे हैं। विद्यापति को हिंदी का पहला कवि माना जाए तो हिंदी कविता का उदेश्य गीतों में हुआ है। लोक आषा की साफ-सुथरी प्रगीतात्मकता का यह उन्मेष भारतीय साहित्य की अभूतपूर्व घटना है।

प्रगीतात्मकता का दूसरा उन्मेष- प्रगीतात्मकता का दूसरा उन्मेष रोमांटिक अधान के साथ हुआ इस रोमांटिक प्रगीतात्मकता के मूल में एक नया व्यक्तिवाद है। जहां समाज के बहिष्कार के द्वारा ही व्यक्ति अपने सामाजिकता प्रमाणित करता है। इन सेमांटिक प्रागीतों में आत्मीयता और ऐन्द्रियता कहीं अधिक है। इस दौरान राष्ट्रीयता संबंधी विचारों को काफी रूप देने वाले मैथिलीशरण गुप्र श्री हुप्रा आलोचकों की दृष्टि में सच्चे अर्थों में प्रगीतात्मकता का आरंभ यहीं है। जिसका आधार है समाज के विरूद्ध व्यक्ति इस प्रकार प्रगीतात्मकता का अर्थ हुआ एकांत संगीत अथवा अकेले कठ की पुकार लेकिन आगे चलकर स्वयं व्यक्ति के अंदर ही अंतः संघर्ष पैदा हुआ। विद्रोह का स्थान- आत्मविडंबना ले ले लिया और आत्मपरकता कदाचित बढ़ी।

समाज पर आधारित काव्य- अकेलेपन के बाद कुछ लोगों ने जनता की स्थिति को काव्य का आधार बनाया जिसमे कविता नितांत समाजिक हो गड़ी इस कारण यह कवित्व से भी वंचित हो गईी फिर कुछ ही समय में नई कविता के अनेक कवियों ने हटवमत स्थितियों का वर्णन करना शुरू किया इसके बाद एक दौर ऐसा आया जब अनेक कवि अपने अंदर का दरवाजा तोड़कर एकदम बाहर निकल आए और व्यवस्था के विरुद्ध के जुनून में उन्होंने ढेर सारी सामाजिक कविताएं लिसा डाली लेकिन यह दौर जल्दी समान हो नई प्रगीतात्मकता का उभार युवा पीढ़ी के कवियों द्वाम कविता के क्षेत्र में कुछ और परिवर्तन हुस यह एक नई प्रगीतात्मकता का उभार है।

आज कवि को अपने अंदर झांकने या बाहरी यथार्थ का सामना करने में कोई हिचक नहीं है। उसकी बजर हर छोटी से छोटी घटना स्थिति वस्तु आदि पर है। इसी प्रकार उसने अपने अंदर आने वाली छोटी से छोटी लहर को पकड़कर शब्दों में बांध लेने का उत्साह श्री हैं कभी अपने और समाज के बीच के रिश्ते को साधने की कोशिश कर रहा है। लेकिन यह रोमांटिक गीतों को समान करने वा वैयक्तिक कविता को बढ़ाने का प्रयास नहीं है अपितु इन कविताओं से यह बात पुष्ट होती जा रही है मितकथन में अतिकथन से अधिक शक्ति होती है और कभी-कभी ठंडे स्वर का प्रभाव गर्म होता है वह एक अए ढंग की प्रगीतात्मकता के उभार का संकेत है।

सब्जेक्टिव

1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य आदर्श क्या थे पाठ के आधार पर स्पष्ट करें ?

उत्तर- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य सिद्धांत के आदर्श प्रबंध काव्य थे। प्रबंध काव्य में मानव जीवन का पूर्ण दृश्य होता है उसमें घटनाओं की संबंध श्रृंखला और स्वाभाविक क्रम से ठीक-ठाक निर्वाह के साथ हृदय को स्पर्श करने वाले उसे नावा भावों को स्साफक अनुभव करानेवाले प्रसंग होते हैं। यही नहीं प्रबंध काव्य में राष्ट्रीय प्रेम जातिय-भावना धर्म-प्रेम या आदर्श जीवन की प्रेरणा देना ही उसका उद्देश्य होता है। प्रबंध काव्य की कथा चूंकि यथार्थ जीवन पर आधारित होती है इससे उसमें असंभव और काल्पनिक कथा का चमत्कार नहीं बल्कि यथार्थ जीवन के विविध पक्षों का स्वभाविक और औचित्यपूर्ण चित्रण होता है। शुक्ल को सूरसागर इसलिए परीसीमित लगा क्योंकि वह गीतिकाव्य है।

आधुनिक कविता से उन्हें शिकायत थी कि ‘कला कला के लिए’ की पुकार के कारण यूरोप में प्रमीत मुक्तकों का ही चलन अधिक देखकर यहां भी उसी का जमाना यह बताकर कहा जाने लगा कि अब ऐसी लंबी कविताएं पढ़ने की किसी को फुर्सत कहां जिनमें कुछ दतिवृत भी मिला रहता हो। इस प्रकार काव्य में जीवन की अनेक परिस्थितियों की ओर ले जाने वाले प्रसंगों या आख्यानों की उदभावना बंद सी हो गई। शुक्ल के संतोष व्यक्त करने का कारण है कि प्रबंध काव्य में जीवन का पूरा चित्र खींचा जाता है कवि अपनी पूरी बात को प्रबलता के साथ कह पाता है यही कारण है कि रामचंद्र शुक्ल को काव्य में प्रबंध काव्य प्रिय लगता है।

2. कला कला के लिए सिद्धांत क्या है?

उत्तर- कला कला के लिए सिद्धांत का अर्थ है कि कला लोगों में कलात्मकता का भाव उत्पन्न करने के लिए हैं इसके द्वारा रस एवं माधुर्य की अनुभूति होती है। इसलिए प्रगीत मुक्तकों (लिरिक्स) की रचना का प्रचलन बढ़ा है। इसके लिए यह भी तर्क दिया जाता है कि अब लंबी कविताओं को पढ़‌ने तथा सुनने की फुर्सत किसी के पास नहीं है ऐसी कविता है जिसमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता है उबाऊ होती है विशुद्ध काव्य की सामग्रियां आदि कविता का आनंद दे सकती है यह केवल प्रगीत मुक्तकों से ही संभव है।

3. प्रगीत को आप किस रूप में परिभाषित करेंगे? इसके बारे में क्या धारणा प्रचलित रही है?

उत्तर- अपनी वैयक्तिकता और आत्मपरकता के कारण “लिरिक” अथवा “प्रगीत” काव्य की कोटि में आती है। प्रगीतधर्मी कविताएं न तो सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त समझी जाती है। न उनसे इसकी अपेक्षा की जाती है आधुनिक हिंदी कविता में गीति और मुक्तक के मिश्रण से नूतन भाव भूमि पर जो गीत लिखे जाते हैं उन्हें ही प्रगीत की संज्ञा दी जाती है। सामान्य समझ के अनुसार प्रगीतधर्मी कविता नितांत वैयक्तिक और आत्मपरक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति मात्र है यह सामान्य धारणा है इसके विपरीत अब कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा जाने लगा है कि अब ऐसी लंबी कविताएं जिसमें कुछ इतिवृत्त भी मिला रहता है इन्हें पढ़ने तथा सुनने की किसी को फुर्सत कहां है अर्थात नहीं है।

4. हिंदी की आधुनिक कविता की क्या विशेषताएं आलोचक ने बताई है

उत्तर- हिंदी की आधुनिक कविता में नई प्रगीतात्मकता का उभार देखता है। वह देखता है आज के कवि को न तो अपने अंदर झांक कर देखने में संकोच है न बाहर के यथार्थ का सामना करने में हिचक अंदर न तो किसी और संदिग्ध विश्व दृष्टि का मजबूत खूंटा गाड़ने की जिद है और न बाहर की व्यवस्था को एक विराट पहाड़ के रूप में आंकने की हवस बाहर छोटी से छोटी घटना स्थिति वस्तु आदि पर नजर है और कोशिश है उसे अर्थ देने की इसी प्रकार बाहर की प्रतिक्रिया स्वरूप अंदर उठने वाली छोटी से छोटी लहर को भी पकड़ कर उसे शब्दों में बांध लेने का उत्साह है।

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